मंगलवार, 10 अप्रैल 2018

मुक्तिबोध, चन्द्रकान्त देवताले, नईम स्मरण प्रसंग

कल यानी 8 अप्रैल 2018 को मध्य प्रदेश के देवास में प्रगतिशील लेखक संघ के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में मुक्तिबोध, प्रो. नईम और चंद्रकांत देवताले स्मरण प्रसंग में शामिल होने का सुअवसर मिला।

कार्यक्रम दो सत्र में सम्पन्न हुआ। पहला सत्र विमर्श का था। इसमें मुक्तिबोध, चंद्रकांत देवताले और प्रो. नईम की रचनाओं का पाठ हुआ। प्रसिद्ध कवि और अनुवादक उत्पल बनर्जी ने मुक्तिबोध की कालजयी कविता अंधेरे में के एक अंश का यादगार गायन प्रस्तुत किया। चंद्रकांत देवताले की चुनिंदा कविताओं और प्रो. नईम के दो गीतों का पाठ किया कवि बहादुर पटेल एवं मनीष शर्मा ने। मुक्तिबोध की कहानियों पर शशिभूषण, चंद्रकांत देवताले पर राजेश सक्सेना एवं प्रो नईम पर विक्रम सिंह ने अपने विचार अनुभव बांटे। 

दूसरे सत्र में शशिभूषण, नीलोत्पल, राजेश सक्सेना, उत्पल बनर्जी, ब्रजेश कानूनगो एवं नरेंद्र गौड़ ने अपनी दो दो कविताओं का पाठ किया। इस अवसर पर प्रलेसं के संस्थापकों सहित महाविद्रोही राहुल सांकृत्यायन एवं प्रगतिशील धारा के उन सभी लेखकों, कलाकारों एवं संस्कृति कर्मियों को याद किया गया जिन्होंने लेखकों की एकजुटता एवं अपराजेय संघर्षशीलता के लिए अपना सर्वोत्तम दिया। कुछ लेखकों ने अपनी जान तक गँवाई लेकिन न पीछे रहे न समझौते किये।



प्रलेसं की देवास इकाई की ओर से इस कार्यक्रम का संयोजन किया मेहरबान सिंह ने। संचालन किया कहानीकार एवं जलेस से सम्बद्ध मनीष वैद्य ने। कार्यक्रम के अंत में हॉल के बाहर लगाए गए बुक स्टाल पर सबने अपनी पसंद की किताबें एवं पत्रिकाएँ खरीदीं। बड़ी संख्या में उपस्थित लेखकों, सहृदयों, सुधीजनों एवं ईटी का आभार माना युवा कवि अमेयकान्त ने।



कार्यक्रम की समाप्ति के बाद जैसा कि आमतौर पर देवास में होता ही है चित्रकार मुकेश बिजोले, उत्पल बनर्जी, नीलोत्पल, राजेश सक्सेना, बहादुर पटेल, मनीष वैद्य, मेहरबान सिंह के साथ हम जाने माने कथाकार प्रकाशकांत जी के घर पहुँचे। वहां न केवल देवताले जी के संस्मरणों का आत्मीय विनोदपूर्ण दौर चल निकला बल्कि आयोजन की खूबियों, सीमाओं की सुंदर विवेचना भी हुई।

कुल मिलाकर कुछ ज़रूरी सीखों और कुछ नए संकल्पों के साथ अनवरत चलते रहने वाले प्रलेसं के देश व्यापी अनगिन आयोजनो में एक यह आयोजन भी हमारी स्मृति में दर्ज हो गया। घर लौटते हुए मुकेश बिजोले की गाड़ी में चली लगातार गपशप के बीच कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार दुर्गाप्रसाद झाला जी की अनुपस्थिति एवं मुक्तिबोध की पंक्तियाँ भीतर गूँजती रहीं :

'इसलिए कि जो है उससे बेहतर चाहिए'

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरूवार (12-04-2017) को "क्या है प्यार" (चर्चा अंक-2938) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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