रविवार, 3 सितंबर 2017

अमेय कांत और शशिभूषण की रचनाओं का पाठ

'कवि अपने समकाल को रचते हुए इतिहास को दर्ज करने का कार्य भी करता है' – देवी अहिल्या केन्द्रीय पुस्तकालय, इंदौर में २६ अगस्त २०१७ (शनिवार) को आयोजित जनवादी लेखक संघ, इंदौर के ४५ वें मासिक रचनापाठ में युवा कवि अमेय कान्त की कविताओं पर चर्चा करते हुए प्रदीप मिश्र ने कहा। इस अवसर पर अमेय कान्त (देवास) व शशिभूषण (उज्जैन) ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। 

अमेय ने 'गुंजाइश', 'माँ ने एक गीत गाया', 'गए हुए लोग', 'भीमसेन जोशी', 'बाम की पुरानी डिबिया', 'चहचहाहट', 'चौराहों पर कुत्ते', 'छूटी हुई दुनिया' आदि कुछ कविताओं का पाठ किया जबकि शशिभूषण ने अपनी कहानी 'जाति-दण्ड' का पाठ किया।

कविताओं पर चर्चा करते हुए प्रो. पद्मा सिंह ने कहा कि ये पाठक के मन में उतरने वाली कविताएँ हैं जबकि ब्रजेश कानूनगो व प्रदीप कान्त ने इन्हें अनुभूति और भाव की सघनाताओं की कविताएें कहा। वेद हिमांशु ने कविताओं की लोक संवेदना पर चर्चा की तो पुनर्वसु जोशी ने रेखांकित किया कि यह बाजारवाद के युग में आत्मीय मानवीय संबंधों की कविताएँ हैं जो धीरे धीरे समाज से ख़त्म होते जा रहे हैं। विनीत तिवारी ने इन कविताओं के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की और कहा कि कवि स्मृति के सूत्र पकड़कर कविता में जाता है। किन्तु इनमे सांसारिक चिंताओं का असर अभी बाकी है। शशिभूषण ने कहा कि इन कविताओं में जीवन के भीतर उतरने की प्रवृत्ति है। प्रभु जोशी ने भी इन कविताओं पर विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि कवि को ही सोचना है कि वह क्या छोड़े और क्या दर्ज करे जिससे कविता, कविता की तरह से आए। अमेय की माँ पर लिखी कविताओं पर उन्होंने कहा कि वे मां के प्रेम की छवियाँ लेकर आते हैं और माँ का प्रेम वह है जो भाषा के ठिठकने के बाद शुरू होता है। वरिष्ठ कवि राजकुमार कुंभज ने कहा कि कवि की कविता का ढांचा नया और अलग से दिखना चाहिए और इस मायने में 'भीमसेन जोशी' उनकी एक बड़ी कविता है। 
शशिभूषण की कहानी पर चर्चा करते हुए जीवन सिंह ठाकुर ने कहा कि यह एक सुगठित कहानी है जिसमें पूरा परिवेश ही एक पात्र है। कहानी कई सवाल खड़े करती है। कहानी में उठने वाले सवाल महत्वपूर्ण हैं। प्रकाश कान्त ने इस कहानी में वर्णित शैक्षणिक संस्थानों में फैले ध्रुवीकरण को इंगित किया तो प्रभु जोशी ने कहा कि यह दक्ष कथाकार की कहानी है जो सवर्ण और दलित के द्वैत को बड़ी बारीकी से समर्थ भाषा में बुनती है। कहानी का अंत विशिष्ट है। यह एक मेटाफर की तरह है। विनीत तिवारी ने इस कहानी में कुछ खूबियों के साथ करुणा के अभाव की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा यह अत्यंत संवेदनशील विषय है। इसमें दलित की उपस्थिति भी होनी चाहिए थी। राजकुमार कुम्भज ने इस कहानी को भाषा और शिल्प की एक बेहतरीन कहानी बताया। उन्होंने कहा हमें बड़ी ख़ुशी है कि एक समर्थ कहानी कार हमारे बीच है। चुन्नीलाल वाधवानी, डॉ रमेश चन्द्र, अशोक शर्मा भारती, सारिका श्रीवास्तव आदि ने भी दोनों रचनाकारों की रचनाओं पर चर्चा की।

कार्यक्रम में राजकुमार कुम्भज के नए कविता संग्रह 'शायद यह जंगल कभी घर बने' का लोकार्पण भी किया गया। हाल ही में दिवंगत हुए कवि चंद्रकांत देवताले की कविता 'यमराज की दिशा' का पाठ कर उनको श्रद्धांजली अर्पित की गयी। साथ ही जलेस इंदौर इकाई ने निर्णय लिया कि अगले एक साल तक सभी कार्यक्रमों की शुरुआत देवताले जी की कविताओं के पाठ से होगी। इस अवसर पर 'पूरा सच' के संपादक रहे पत्रकार रामचंद्र क्षत्रपति को याद किया गया गया जिन्होंने अपने अखबार 'पूरा सच' में सबसे पहले राम-रहीम उर्फ गुरमीत की पोल खोली थी, साध्वी की चिट्ठी छापी थी, जिसके बाद उनको मरवा दिया गया था। साध्वियों और उन सभी लोगों की सराहना की गयी जिन्होंने बलात्कारी बाबा को सज़ा दिलवाने में सक्रिय भूमिका निभायी। कार्यक्रम का संचालन रजनी रमण शर्मा ने किया और आभार देवेन्द्र रिणवा ने माना।


- प्रदीप कांत

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (04-09-2017) को "आदमी की औकात" (चर्चा अंक 2717) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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