शनिवार, 10 दिसंबर 2016

आखिर क्यों?

क्यों मेरे पैदा होने पर हर कोई दुखी है?
तेरी आँखों में भी आँसू हैं माँ क्या यह सही है?
क्यों तेरे दूर होते ही मैं डर सी जाती हूँ
क्यों तेरे बिना दुनिया में खुद को अकेला ही पाती हूँ?
क्यों मुझे इतना ही पढ़ाया जाता है कि मैं पढ़ सकूँ?
क्यों मुझे ही बताया जाता है अब रोऊँ और अब हँसूँ?
क्यों दुपट्टे और घूंघट की आड़ में मुझे रहना पड़ता है?
क्यों सुनसान सड़कों पे मुझे इतना डर लगता है?
क्यों अपनी सहेली से ना मिलने जा सकती हूँ मैं उसके घर?
क्यों बार बार टोका जाता मुझे खिलखिलाकर हँसने पर?
क्यों दुनिया सिर्फ़ मेरी बनायी गयी है घर की दहलीज़ तक?
क्यों सपने देखने का सिर्फ़ मुझे ही नहीं है हक़?
क्यों ये काली रातें मुझे घर से निकलने नहीं देतीं?
क्यों हँसी होती मेरी दुनिया अगर मैं तेरा बेटा होती?
क्यों मुझे ही नहीं पता बाज़ार कहाँ है इस शहर का?
क्यों हिसाब देना पड़ता है मुझे हर इक पल और पहर का?
क्यों ये दुनिया हर वक्त करती है मुझसे ही सवाल?
क्यों मेरे कपड़ों से जाँच लेती है यह मेरे मन का हाल?
क्यों मेरी सकुचाई नज़रें सिर्फ़ जमीन पर रहती हैं?
क्यों इस दुनिया में सबसे ज्यादा लड़कियाँ ही सहती हैं?
लड़कियाँ ही सहती हैं!

मेघा गोस्वामी, कक्षा 10वीं

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