शनिवार, 10 दिसंबर 2016

अर्णब गोस्वामी का इस्तीफ़ा

जीवन में कुछ कराये गए परिचय और प्रशंसाएं भी तय कर देते हैं कि आप अमुक शख्सियत के बारे में कैसा सोचने के लिए विवश होंगे।

मैंने पहली बार अर्णब गोस्वामी का नाम और तारीफ़ एक ऐसे शिक्षक से सुने, जिन्हें परीक्षा हॉल में भी विद्यार्थी हित में चॉक, डस्टर, किताबें लेकर जाते देखा।

संयोग से उन स्मार्ट गुरूजी की भी अंग्रेज़ी अच्छी मानी जाती थी। मुझे यही लगता था क्या तो ये क्या इनकी पसंद!!! होगा कोई इन्हीं के जैसा सत्यनिष्ठ!!!

अर्णब गोस्वामी को मैंने बहुत बाद में देखा। जब टाइम्स नाउ सब्सक्राइब किया। देखा क्या चीखते सुना। टीवी पर मेरे देखने में ऐसी धाराप्रवाह अशिष्टता पहले नहीं आयी थी।

बंदा नहीं जमना था सो नहीं जमा।

अब उनके इस्तीफ़े की ख़बर सुनकर खिन्न हूँ कि सरकारी सुरक्षा प्राप्त यह शख्स कहीं किसी पत्रकारिता विश्वविद्यालय का डीन वगैरह न बना दिया जाए।

टीवी के दर्शक टीआरपी बढ़ा सकते हैं लेकिन बदले नहीं जा सकते। नए लोग तैयार करने हों तो ऐसों को चुनाव कर सकनेवालों की भूमिका में लाया जाता है। अर्णब का हुनर जानने वाले खूब जानते होंगे। यही सोचकर डर लगता है।

मेरी अर्णब गोस्वामी के प्रति जो धारणा है मैं उससे भी खिन्न रहता हूँ। ठीक है यार सबका अपना अपना रास्ता है। लेकिन जाने क्या है कि यह सुदर्शन एंकर बर्दाश्त नहीं होता। बहुत से दक्षिणपंथी मेरे अध्यापक भी रहे हैं। उनके प्रति मेरे मन में सम्मान भी है।

अर्णब गोस्वामी के प्रति मेरी रुचि के पीछे कहीं उन शिक्षक महोदय से नाराजगी तो नहीं? तब इसका एक ही इलाज़ हो सकता है आप चाहे जो हों आपको ग़लत लोगों की पसंद बनने से बचना चाहिए।

शशिभूषण

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