शनिवार, 10 दिसंबर 2016

जेएनयूवाली इंटरनेशनल डायरी

जब समय, सत्ता की भाप से निर्मित झूठ के कुहरे में बार बार ढँक दिया जाए
जब देशकाल और विद्या की ज़मीन विश्वविद्यालय, दमन-षडयंत्र और दुरभिसंधियों के केंद्र बना दिये जाएं
जब सबसे प्रतिभाशाली और प्रतिरोध के प्रतीक विद्यार्थी और छात्र नेता जानबूझकर देशद्रोही बना दिये जाएं
जब सबसे उजले दिखनेवाले और रौशनी में नहाए हुए मीडिया के सुदर्शन चेहरे कालनेमि या मामा मारीच की काली भूमिका में आ जाएं
जब सब कुछ निराशा में डूब रहा हो, अन्याय को नयी नयी नीतियों से ढंका जा रहा हो और मनुष्य विरोधी, विघटनकारी ताक़ते स्वच्छंद काली खप्पर खेलने लग जाएं
जब लगने लगे कि भारतीय उपमहाद्वीप का नागरिक होने का आपद धर्म निबाहना भी खतरे से ख़ाली नहीं, सच बोलने में देशद्रोह लग जाए
तब क्या किया जाये?
कौन सी राह चला जाये?
किसकी बांह गही जाये?
जवाब वही पुराना है
जिससे क़ौमी याराना है
लिखा जाये
किताब निकाली जाये

तो किताबी सलाम हाज़िर है
जेएनयू डायरी हाज़िर नाज़िर है
जेएनयू वाले मिथिलेश की
कलम से निकली 
कलाम जेएनयू का

पढ़िए 
पढ़ाइये
फैला दीजिये देश में

शशिभूषण

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