शुक्रवार, 17 जून 2016

पल प्रतिपल



आजकल ऐसा लग रहा है कि पत्रिकाओं का हर पाठक 'पल प्रतिपल 79' पढ़ रहा है। केवल पढ़ ही नही रहा इसके बारे में अपनी राय फेसबुक पर विस्तार से लिख भी रहा है।

मैने सोचा यदि 'पल प्रतिपल' के इतने पाठक और इतनी दूर-दूर पहुँच हैं तो 'पल प्रतिपल 78' में पाठकों का किसी भी नाम से कोई स्तंभ क्यों नहीं है?

इसका जवाब 78वे अंक के संपादकीय में ही मिल गया। संपादक देश निर्मोही लिखते हैं-


" यह सफ़र तीस साल पहले आरंभ हुआ। एक अरसे तक लगातार इसके अंक निकलते चले गये और एक बड़ा पाठक वर्ग हमारे साथ जुड़ता चला गया। फिर सात वर्ष पहले इसे अचानक बंद करना पड़ा। इतने वर्ष तक यह पत्रिका मेरे पास मौन होकर यूँ मौजूद रही जैसे अब इसका वजूद मुझसे कभी जुदा नहीं हो सकता।"- पृष्ट 5

त्रैमासिक के रूप में प्रकाशित 'पल प्रतिपल 78' छमाही है। शीर्षक है 'कथा का समकाल' सुना है 79 वां अंक भी कथा का समकाल ही है। यह भी पढ़ा-सुना है कि इसमें कुछ कहानीकार दुहराये गये हैं। जितना मैंने पढ़ा उसके अनुसार पल प्रतिपल 78 से पल प्रतिपल 79 की कोई सूचना नहीं मिलती।

मैने सोचा भारतीय उपमहाद्वीप में 'कथा का समकाल' पर केन्द्रित कोई पत्रिका अपने अगले ही अंक में कहानीकारों को दुहरा कैसे सकती है? फिर खयाल आया कि हो सकता है कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण समकालीन लेखकों की उपेक्षा शेष पत्रिकाओं ने अतीत में कर रखी हो जिसकी भरपाई यह पत्रिका करना चाहती है।

खैर, क्या मैं यह इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मैं पल प्रतिपल की संपादकीय टीम की नज़र में आ जाना चाहता हूँ या फेसबुक में इधर-उधर बिखरी टीपों को संपादक के ही संयोजन में पढ पढ़कर कुंठित हो गया हूँ?

इधर माना यह भी जा रहा है कि फेसबुक का पवित्र इस्तेमाल केवल कुछ लोगों को ही आता है। बाक़ी लोग प्रकट हो जाना चाहते रहते हैं।

मैं दो कारणों से यह लिख रहा हूँ-

1- यह पत्रिका हम जैसे पाठकों तक भी पहुँचनी चाहिए।
2- यदि पत्रिका कोई विशेषांक निकालती है तो इसके लिए बड़े पैमाने पर रचनायें आमंत्रित की जायें।

कहने में यह अति साधारण लगेगा लेकिन पत्रिकाओं में आजकल यह प्रवृत्ति हावी है कि अपने मित्रों और उनके मित्रों की रचनायें मिलाकर कोई विशेषांक निकाल धमाका कर दिया जाये।

इसका अपवाद हंस, कथादेश, बया, परिकथा, रचना समय आदि ही रहे। वरना मेरा अनुभव यह है कि बड़ी बड़ी पत्रिकाओं ने एक अंक पहले बताकर सीधे विशेषांक ही पेश किया।

यहाँ लिख दिया है ताकि यह बात भी पल प्रतिपल जैसी किसी अच्छी पत्रिका के पाठकों के ध्यान में रहे।

-शशिभूषण

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