सोमवार, 30 अगस्त 2010

आना

यह दिन सृष्टि का पहला दिन था
रची जानी थी इतनी बड़ी दुनिया
और हमारे हाथों में कोई औज़ार न थे

हमने सागर में उतार दी थी अपनी नाव
हमारे पास एक पतवार तक नहीं थी

हमें रचना था समय पर
उसकी गति पर
हम नियंत्रण नहीं कर सकते थे

मेरे जीवन के रेगिस्तान में
एक नदी की तरह आई थीं तुम
और मेरी पूरी रेत को प्रेम में बदल दिया था.

-विमलेन्दु

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