सोमवार, 8 मार्च 2010

अपने हिस्से की माफ़ी

मुझे पक्का याद था कि आज महिला दिवस है.इसे ही ध्यान में रखकर मैंने कल एक कविता की पोस्ट भी लगाई.पर जब आज स्कूल गया तो किसी ने मुझे शुभकामना नहीं दी.मैंने भी किसी से कुछ नहीं कहा.सब कुछ ऐसे रहा जैसे कोई सचमुच का ऐसा दिन भी हो सकता है जिसमें हँसी का साथ देते हुए बढ़कर हाथ मिला लेने का मौक़ा ही न आए.मोबाईल में भी इससे संबंधित कोई एसएमएस नहीं आया.लेकिन भीतर ही भीतर यह उत्सुकता भी रही कि हमारे घाघ राजनीतिज्ञ महिला आरक्षण विधेयक को टालने में इस बार कौन सी सफल युक्ति अपनाएँगे.अनुमान जनित अफसोस भी रहा कि इस बार भी पुराना इतिहास ही न दोहराया जाए.
खैर,स्कूल में एक मीटिंग में हम सब एकत्र हुए.सारी बातें हुई.चलने का समय आया तो संस्कृत के अध्यापक को जाने कैसे याद आ गयी उन्होंने वी.तमिलारसी मैडम को हैप्पी वीमन्स डे बोला.मैडम ने एक पल की देरी किए बिना तुरंत कहा इतनी देर से इस विश का कोई मतलब नहीं.फिर उन्होंने सीधा मेरी ओर इशारा करते हुए कहा कि हिंदी सर को देखिए इतना बोलते हैं पर आज इनके पास भी एक सेंटेंस नहीं.यह बात मेरे भीतर तक उतर गई.तमिलारसी मैडम अपने साफ़ दिल,तुरंत निर्णय और गलत का कभी समर्थन नहीं करने के लिए जानी जाती हैं.मुझे यह नहीं भूल सकनेवाली अपनी ग़लती लगी लेकिन उनकी अपेक्षा पर गर्व भी हुआ.
यही सोचते हुए कि हम अपनी उदारता में भी आवश्यक सौजन्य कैसे भूल जाते हैं घर आया.मेरे दिमाग़ से अपनी गलती सुधारने का खयाल भी क़रीब क़रीब निकल चुका था कि अब से थोड़ी देर पहले मेरी एक दोस्त का फ़ोन आया.उसने मुझसे प्रत्यक्ष कोई शिक़ायत नहीं कि पर यह बोली कि आज सुबह से अखबारों में महिला दिवस के बारे में बहुत पढ़ा,समाचार चैनलों मे बहसें सुनी पर किसी ने मुझे महिला दिवस विश नहीं किया.यही फ्रैंडशिप डे या वैलेंटाईन डे होता तो जान बचानी मुश्किल होती.कोई जेंट्स डे होता तो स्टाफ़ रूम में ठहाके गूँजते.

यही दो बातें हैं आज मेरे जेहन में जिन्होंने मुझमें अपराधबोध पैदा किया.एक खबर भी है राज्यसभा की जो गुस्से से भर रही है.पर कोई बड़ी बात कहने से ज्यादा ज़रूरी लग रहा है आज मुझे;मैं पहले अपने हिस्से की क्षमा माँगू.

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